( गगन थिंद ) हिसार नगर निगम के 6 कर्मचारियों पर 5000 रिश्वत लेने के मामले में चार्जशीट हो सकती है । शहरी स्थानीय निकाय विभाग हरियाणा के मुख्य सतर्कता अधिकारी ने जांच में इन 6 कर्मचारियों को दोषी माना है। इन कर्मचारियों में सीएओ अनिल कुमार मेहता, अब सलाहकार टैक्स ब्रांच, क्लर्क रजनीश, क्लर्क विजय कुमार, डाटा एंट्री ऑपरेटर विक्रम, डाटा एंट्री ऑपरेटर दिनेश रोहिला और डाटा एंट्री ऑपरेटर लक्ष्मण शामिल हैं। यूएलबी ने नगर निगम आयुक्त हिसार को इन सभी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर निदेशालय को रिपोर्ट भेजने के आदेश दिए हैं। यह आदेश यूएलबी के पूर्व निदेशक यशपाल ने दिए हैं।
आपको बता दें कि रिश्वतखोरी के आरोपों से घिरे निगम कर्मचारियों में क्लर्क को छोड़कर बाकी कर्मचारी कौशल रोजगार निगम और अन्य माध्यमों से अस्थायी कर्मचारी हैं। ऐसे में नगर निगम कुछ को चार्जशीट करने की बजाय बाहर का रास्ता दिखा सकता है। ऐसे में अगर मामले में ठोस कार्रवाई होती है तो कई कर्मचारी निगम से बाहर हो जाएंगे।
2023 में रिकॉर्ड सही करवाने के लिए 5000 की मांग
निगम में कार्यरत सफाई कर्मचारी-सह-चौकीदार प्रशांत जैन के परिजनों की मोती बाजार में एक दुकान है। जो उसके चाचा के नाम पर है। उस प्रॉपर्टी का रिकॉर्ड सही करवाने के लिए वर्ष 2023 में फाइल की गई थी। शिकायतकर्ता का आरोप है कि उस फाइल को फाइल करने के लिए 5 हजार रुपए की मांग की गई थी।
मांग पूरी न होने पर फाइल रिजेक्ट कर दी गई थी। इस पर कर्मचारी ने पूरे घटनाक्रम के साथ शिकायत सेवा का अधिकार (आरटीएस) आयोग को भेज दी थी। मुख्य आयुक्त टीसी गुप्ता ने निगम अफसरों से जवाब मांगा था। टीसी गुप्ता ने मामले का संज्ञान लिया तो प्रशांत के मुताबिक कर्मचारियों के निर्देश पर दोबारा फाइल दायर कर दी गई।
रिकॉर्ड को जानबूझकर सही करने की बजाय फाइल को लंबित रखा गया। इसके बाद मामले की शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री और विजिलेंस से की गई थी। यूएलबी विजिलेंस ने मामले की जांच की तो छह को दोषी माना गया है।
DMC को थी पूरे मामले की जानकारी
सूत्रों के अनुसार जांच सारांश रिपोर्ट में मुख्य सतर्कता अधिकारी ने नगर निगम में तैनात उपायुक्त (डीएमसी) के खिलाफ तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि डीएमसी को मामले की पूरी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने मामले को सुलझाने और निदेशालय द्वारा जारी नीति को लागू करने के लिए उचित हस्तक्षेप नहीं किया, जो लापरवाही का एक बुरा उदाहरण है।
ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने नगर निगम आयुक्त और एचआरटीएससी चंडीगढ़ के मुख्य आयुक्त को गलत जानकारी दी, जिसमें उन्होंने नीति से संबंधित निर्देशों को छिपाया। उन्होंने मामले को सुलझाने के लिए विवेकपूर्ण तरीके से काम नहीं किया। वे शिकायतकर्ता के प्रति पूरी तरह से पक्षपाती नजर आए। साथ ही, अगर वे अपने ही कर्मचारी का मार्गदर्शन करने में विफल रहे, तो उनसे जनता का मार्गदर्शन करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?