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ओपी चौटाला पर बनी फिल्म “दसवीं” , अभिषेक बच्चन ने निभाया किरदार

( गगन थिंद )  हरियाणा के 5 बार मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला (89) का शुक्रवार को गुरुग्राम में निधन हो गया। चौटाला को राजनीति विरासत में मिली थी। वे पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के सबसे बड़े बेटे थे।

ओपी चौटाला ऐसे नेता रहे जिनका मुख्यमंत्री का कार्यकाल 5 दिन से लेकर 5 साल तक का रहा। उनसे जुड़े कई रोचक किस्से भी मशहूर हैं। जिसमें पिता से ज्यादा न पढ़ने के लिए स्कूल छोड़ना और फिर तिहाड़ जेल में रहते पढ़ाई करना, घड़ियों की स्मगलिंग के आरोप से लेकर महम और कंडेला कांड भी शामिल है।

चौटाला के जीवन के इतने उतार-चढ़ाव को देखकर ही उन पर दसवीं मूवी भी बनी। जिसमें उनका किरदार बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन के एक्टर बेटे अभिषेक बच्चन ने निभाया था।

पिता के लिए पढ़ाई छोड़ी, जेल में रहकर पढ़ा, उन पर दसवीं फिल्म बनीं

शुरुआती शिक्षा के बाद ओपी चौटाला ने पढ़ाई छोड़ दी। इसकी वजह भी दिलचस्प थी। वह अपने पिता चौधरी देवीलाल से ज्यादा नहीं पढ़ना चाहते थे। एक इंटरव्यू में खुद उन्होंने इसका जिक्र करते हुए कहा था- ‘उस जमाने में बेटों का बाप से ज्यादा पढ़ा होना अच्छा नहीं माना जाता था। ऐसे में मैंने जल्द ही पढ़ाई छोड़ दी।’

मगर, पढ़ाई के प्रति उनका मोह तब जागा, जब टीचर भर्ती घोटाले में उन्हें 10 साल की जेल हुई। 2017 से लेकर 2021 के बीच उन्होंने तिहाड़ जेल में रहते हुए 10-12वीं पास की। उनके इस जज्बे को बॉलीवुड ने भी आकर्षित किया। उनके ऊपर ‘दसवीं’ फिल्म बनी। जिसमें अभिषेक बच्चन चौटाला के किरदार में थे।

चौटाला के स्कूल के दिनों को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता एक लेख में लिखते हैं- ‘जब स्कूल में लंच की घंटी बजती तो ओम प्रकाश सबसे पहले हॉस्टल की मेस की तरफ भागते। एक दिन टीचर ने उन्हें रोक लिया तो बोले भूख बर्दाश्त नहीं होती।’

पहली बार हारे तो जिद पर अड़े, चुनाव रद्द कराया, फिर उपचुनाव जीता

ओपी चौटाला जिद्दी नेता के तौर पर भी जाने जाते थे। साल 1968 में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हुए। ऐलनाबाद सीट से ओम प्रकाश चौटाला ने चुनाव लड़ा। पारंपरिक सीट होने की वजह से यहां के चुनाव में पूरे चौधरी परिवार ने ताकत झोंक दी, लेकिन चौटाला विशाल हरियाणा पार्टी के लालचंद्र खोड़ा से चुनाव हार गए।

चौटाला ने धांधली का आरोप लगाए। फिर वे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़े। आखिर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1970 में ऐलनाबाद सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई। चौटाला यहां से उपचुनाव में उतरे और जीतकर पहली बार विधायक बने।

भाई से झटकी CM कुर्सी, इसी से परिवार में राजनीतिक दरार आई

साल 1989 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए और राजीव गांधी की सरकार चुनाव हार गई। चौधरी देवीलाल केंद्र में उपप्रधानमंत्री बनाए गए। उस वक्त देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। देवीलाल के केंद्र में आने के बाद सवाल उठा कि अब सीएम कौन बनेगा?

रेस में उनके छोटे बेटे चौधरी रणजीत चौटाला सबसे आगे थे। वे उस वक्त हरियाणा विधानसभा के सदस्य भी थे। ओम प्रकाश राज्यसभा के सांसद होने की वजह से रेस में सबसे पीछे चल रहे थे, लेकिन देवीलाल ने दिल्ली में ओम प्रकाश के नाम की घोषणा कर दी। देवीलाल की पहल पर राज्यपाल ने ओम प्रकाश को शपथ भी दिला दी। इस घटना के बाद ही देवीलाल परिवार में सियासी दरार आ गई।

CM बनने और कार्यकाल में पिता का रिकॉर्ड तोड़ा

ओपी चौटाला ने पिता चौधरी देवीलाल की विरासत पर राजनीति शुरू की, लेकिन मुख्यमंत्री रहने के मामले में उन्होंने अपने पिता का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया। ओम प्रकाश चौटाला 5 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे, जबकि देवीलाल सिर्फ 2 बार ही इस कुर्सी तक पहुंच पाए थे।

देवीलाल 4 साल तक ही मुख्यमंत्री रह पाए, जबकि चौटाला के पास करीब 6 साल तक हरियाणा की बागडोर रही। चौटाला हरियाणा विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर भी रहे। 2024 के चुनाव में चौटाला ने ही विपक्षी मोर्चा बनाने की पहल की थी। उनके ही जींद में हुए कार्यक्रम में विपक्ष के कई बड़े नेता आए थे।

घड़ियों की स्मगलिंग में फंसे तो पिता ने घर से निकाला, फिर माफ किया

साल 1978 में ओम प्रकाश चौटाला के पिता देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। चौटाला साउथ-ईस्ट एशिया के एक सम्मेलन में बैंकॉक गए हुए थे। 22 अक्टूबर को वे भारत लौटे। दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम विभाग ने जब उनके बैग की तलाशी ली तो करीब 4 दर्जन घड़ियां और 2 दर्जन महंगे पेन बरामद हुए।

जल्द ही खबर फैल गई कि देवीलाल का बेटा ओम प्रकाश चौटाला तस्करी में पकड़ा गया है। देवीलाल उस समय चंडीगढ़ PGI में अपना इलाज करवा रहे थे। जब देवीलाल को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। कॉन्फ्रेंस में उन्होंने साफ लहजे में कह दिया, ‘ओम प्रकाश के लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं।’

हालांकि बाद में खुलासा हुआ कि चौटाला घड़ियों की स्मगलिंग नहीं कर रहे थे। CM का बेटा होने के नाते विदेश दौरे पर उन्हें गिफ्ट में घड़ियां मिली थीं। जांच हुई तो चौटाला निर्दोष पाए गए। इसके बाद देवीलाल ने भी बेटे को माफ कर दिया।

पिता के कहने पर CM होते हुए भी चुनाव नहीं लड़ा

साल 1991 के मई-जून महीने में प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। देवीलाल ने घिराय, ओमप्रकाश चौटाला ने दड़बा और रणजीत चौटाला ने रोड़ी से पर्चा भरा। हालांकि, बाद में देवीलाल ने तय किया कि परिवार से केवल एक व्यक्ति चुनाव लड़ेगा। पिता की बात मानते हुए ओम प्रकाश चौटाला CM होते हुए भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़े।

महम में हिंसा के कारण देवीलाल चौतरफा घिरे थे। वह महम का रास्ता काटकर दिल्ली जाया करते थे। देवीलाल ने घिराय हलके से फार्म भरा और साथ ही सांसद के चुनाव के लिए रोहतक से भी आवेदन कर दिया, मगर दोनों ही चुनाव देवीलाल हार गए। हरियाणा में कांग्रेस की सरकार आ गई। इसी बीच राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बना दिया गया। नरसिम्हा राव ने हरियाणा में भजनलाल को मुख्यमंत्री बना दिया।

1993 में कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल ने शमशेर सिंह सुरजेवाला को राज्यसभा में भेज दिया। इससे नरवाना विधानसभा की सीट खाली हो गई। उपचुनाव में शमशेर सिंह ने अपने बेटे रणदीप सुरजेवाला को नरवाना से उतारा। इस सीट से ओम प्रकाश चौटाला ने भी चुनाव लड़ा। ओम प्रकाश चौटाला को जीत मिली। इस प्रकार चौटाला फिर से हरियाणा विधानसभा में लौटे।

महम कांड, जिसके चलते 2 बार CM की कुर्सी छोड़नी पड़ी

चौटाला पहली बार 2 दिसंबर 1989 को हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। तब वे राज्यसभा सांसद थे। CM बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल ने उन्हें अपनी पारंपरिक सीट महम से चुनाव लड़वाया, लेकिन खाप पंचायत ने इसका विरोध शुरू कर दिया। 36 बिरादरी की खाप ने फैसला किया कि देवीलाल के भरोसेमंद और हर चुनाव में उनके प्रभारी रहे आनंद सिंह दांगी को चुनाव मैदान में उतारा जाए, पर देवीलाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। ​​खाप ने आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय मैदान में उतार दिया।

27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई, जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की भेंट चढ़ गई। चूंकि राज्य का मुख्यमंत्री चुनाव लड़ रहा था, इसलिए देश-विदेश की मीडिया इस पर नजर रख रही थी। चुनाव में धांधली का मामला मीडिया की सुर्खियां बन गया। चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने के आदेश दिए। जब दोबारा वोटिंग हुई, तो फिर से हिंसा भड़क उठी।

चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया। लंबे सियासी घटनाक्रम के बाद 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय की गईं, लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई। चौटाला ने दांगी के वोट काटने के लिए अमीर सिंह को डमी कैंडिडेट बनाया था। अमीर सिंह और दांगी एक ही गांव मदीना के थे। हत्या का आरोप भी दांगी पर लगा।

जब पुलिस दांगी को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंची, तो उनके समर्थक भड़क गए। पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चली दीं। इसमें 10 लोगों की मौत हो गई। महम कांड का शोर संसद में भी गूंजने लगा। प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गठबंधन के दबाव में देवीलाल को झुकना पड़ा। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के साढ़े 5 महीने बाद ही ओम प्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को CM बनाया गया। कुछ दिन बाद चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए।

बनारसी दास को 51 दिन बाद ही पद से हटाकर चौटाला दूसरी बार CM की कुर्सी पर जा बैठे, लेकिन महम कांड का शोर अभी कम नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी चाहते थे कि चौटाला पर जब तक केस चल रहा है वे CM न बनें। मजबूरन 5 दिन बाद ही चौटाला को फिर से पद छोड़ना पड़ा। अब की बार उन्होंने मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को CM बनाया।

कंडेला कांड: गोलियों से 8 किसान मारे गए, चौटाला कभी CM रहते नहीं गए

साल 2002 में हरियाणा में किसानों ने बिजली बिल माफ करने के लिए आंदोलन किया था। ओम प्रकाश चौटाला 2000 में मुख्यमंत्री बने। वे बिजली के बिल माफी का नारा देकर सत्ता में आए, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार लोगों पर बिजली के बिल भरने के लिए दबाव बनाने लगी। इसके चलते आंदोलन शुरू किया। लोगों ने फैसला लिया कि कोई भी बिल नहीं भरेगा, यदि बिजली अधिकारी कनेक्शन काटने आते हैं तो उनका विरोध होगा।

कंडेला गांव में आंदोलन का मंच तैयार हुआ। इस पर सरकार ने कंडेला सहित पांच गांवों की मुख्य लाइन ही पावर हाउस से कटवा दी। लोगों ने रोड जाम कर दिया। इसके बाद कंडेला में फायरिंग हुई, लेकिन इसमें कोई जान-माल की हानि नहीं हुई।

इसके बाद नगूरां व गुलकनी गांव में फायरिंग हुई। इसमें 8 किसानों की मौत हो गई। इसके बाद आंदोलन भड़क गया। किसानों ने कई अधिकारियों को बंधक बनाया था। इसके चलते दो महीने तक कंडेला गांव में जींद-चंडीगढ़ मार्ग बंद रहा। इसके बाद से ही कंडेला गांव को आंदोलन के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा।

2000 के विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश चौटाला जींद जिला के ही नरवाना विधानसभा से विधायक बनकर मुख्यमंत्री बने। ऐसे में उनका जींद में काफी आना-जाना रहता था। कंडेला गांव जींद-चंडीगढ़ मार्ग पर पड़ता है, लेकिन कंडेला कांड के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए भी चौटाला कभी सीधे कंडेला के रास्ते नहीं निकले।

इससे जुड़ा यह किस्सा भी मशहूर है कि एक सांड ने आंदोलनकारियों को पुलिस से बचाया था। जब घुड़सवार पुलिस ने उन पर गोलियां चलाईं तो सांड ने पुलिस को खदेड़ दिया था।

टीचर भर्ती घोटाले में बेटे समेत 10 साल कैद, सजा पूरी होने से पहले

 रिहा हुए साल 1999-2000 में हरियाणा के 18 जिलों में टीचर भर्ती घोटाला सामने आया। आरोप लगा कि मनमाने तरीके से 3206 जूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचरों की भर्ती की गई थी। उस समय के प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार ने घोटाले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट के आदेश पर 2003 में CBI ने घोटाले की जांच शुरू की।

जांच आगे बढ़ी तो घोटाले की परतें खुलती चली गईं। जनवरी, 2004 में CBI ने ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे अजय चौटाला, OSD विद्याधर, राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी समेत 62 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।

जनवरी, 2013 में दिल्ली में CBI की स्पेशल कोर्ट ने चौटाला और उनके बेटे अजय सिंह चौटाला को IPC और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत 10 साल की सजा सुनाई। चौटाला इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए, लेकिन कोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी। 2018 में केंद्र सरकार की विशेष माफी योजना के तहत ओमप्रकाश चौटाला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

इसमें नियम था कि 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के जिन कैदियों ने अपनी आधी सजा काट ली है, उन्हें रिहा किया जाएगा। उनकी आधी से ज्यादा सजा पूरी हो चुकी थी और उम्र भी करीब 83 साल थी। ऐसे में उनकी सजा पूरी होने से कुछ समय पहले 2 जुलाई, 2021 को रिहा कर दिया गया।

दुष्यंत को CM बनाने के नारे लगे तो चौटाला ने मंच से ही दोनों भाई पार्टी से निकाले

जनवरी 2013 को दिल्ली की एक अदालत ने 14 साल पुराने टीचर भर्ती घोटाले में ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को 10-10 साल की सजा सुनाई। दोनों के जेल जाने के बाद देवीलाल की विरासत संभालने का दारोमदार उनके पोते और ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला के कंधों पर आ गया।

इधर, अजय चौटाला ने विदेश में पढ़ रहे अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को वापस बुला लिया। दोनों के हरियाणा लौटते ही अभय चौटाला से उनकी तनातनी शुरू हो गई। पार्टी दो खेमों में बंट गई। एक खेमा खुलेआम दुष्यंत चौटाला को ‘दूसरा देवीलाल’ का दर्जा देने लगा। अजय चौटाला की ओर से बनाए गए INLD के स्टूडेंट विंग इनसो ने मुख्यमंत्री के लिए दुष्यंत का नाम उछालना शुरू कर दिया।

इसी दौरान ओपी चौटाला पैरोल पर बाहर आए। 7 अक्टूबर 2018 को हरियाणा के गोहाना में INLD की सद्भावना रैली थी। मंच पर ओमप्रकाश चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय चौटाला मौजूद थे। थोड़ी देर बाद ट्रैक्टर मार्च करते हुए दुष्यंत चौटाला, अपने भाई दिग्विजय के साथ सभा में पहुंचे।

दुष्यंत चौटाला के भाषण के वक्त उनके समर्थक शांत रहे, लेकिन जैसे ही अभय चौटाला बोलने के लिए खड़े हुए तो कार्यकर्ताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया। नारा उछला- ‘हमारा CM कैसा हो, दुष्यंत चौटाला जैसा हो।’

इसके बाद जब ओमप्रकाश चौटाला भाषण देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने सख्त लहजे में कहा- ‘अगर नारे ही लगाने हैं तो मैं वापस चला जाता हूं। मुझे अपनी याददाश्त पर पूरा भरोसा है। मैंने देख लिया कि कौन क्या कर रहा है। नारे लगाने से काम चलता तो मैं अकेला काफी था। माहौल खराब करने वाले या तो सुधर जाएं, वर्ना चुनाव से पहले निकालकर बाहर फेंक दूंगा।’

इसके बाद दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को INLD ने कारण बताओ नोटिस भेजा और कुछ ही दिन बाद ओम प्रकाश चौटाला ने दोनों को पार्टी से निकाल दिया। 9 दिसंबर 2018 को दुष्यंत और दिग्विजय ने मिलकर जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी की नींव रखी।

दोनों ने अपने पिता अजय चौटाला को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। 2019 में विधानसभा चुनाव हुए। BJP को 40 और कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं। जेजेपी को 10 सीटें मिलीं और ओमप्रकाश चौटाला की INLD सिर्फ एक सीट पर सिमट गई।

जेजेपी ने BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई। दुष्यंत चौटाला डिप्टी CM बने। रणजीत चौटाला भी इस सरकार का हिस्सा बने। वे सिरसा की रानिया सीट से निर्दलीय चुनाव जीते थे। 2024 में रणजीत BJP में शामिल हो गए और हिसार सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।

 

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