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13 साल की बच्ची को संयास की शिक्षा दी, बच्ची बनना चाहती थी आईएएस

( गगन थिंद ) यूपी में लगे प्रयागराज महाकुंभ मेले में जूना अखाड़ा की काफी चर्चा है. आगरा की 13 साल की राखी को जूना अखाड़े में  उसके माता-पिता ने अपनी को दान किया था,  इसके बाद  इस अखाड़े के संत कौशल गिरी ने तेरह साल की बच्ची को संयास की शिक्षा देकर अखाड़े में शामिल किया था. अब इसपर कार्यवाई करते हुए अखाड़े ने संत और साध्वी को निष्काषित कर दिया है. उनका कहना है कि नियमों के खिलाफ जाकर नाबालिग को अखाड़े में शामिल किया गया है, जिसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

दो दिन पहले ही तेरह साल की राखी सिंह धाकरे को साध्वी की दीक्षा दी गई थी. इसके बाद राखी का नाम गौरी गिरी कर दिया गया था. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें बच्ची को कहते सुना गया कि वो बड़ी होकर आईएएस बनना चाहती थी. लेकिन अब उसे साध्वी की तरह रहना पड़ेगा. इसके बाद अखाड़े के सदस्यों ने आमसभा की और उसमें संत कौशिक गिरी को सात साल ले लिए निष्काषित करने का फैसला लिया गया.

बच्ची के हित में लिया  फैसला

अपने फैसले में संतों ने डिसाइड किया कि बच्ची को उसके माता-पिता को सौंप दिया जाएगा. बता दें कि अखाड़े के नियमों के मुताबिक, नाबालिग को कभी दीक्षा नहीं दी जा सकती है. लेकिन संत कौशिक ने इसकी अवहेलना करते हुए तेरह साल की बच्ची को दीक्षा देकर अखाड़े में शामिल कर लिया. नियम तोड़ने के लिए दंड स्वरुप उन्हें निष्काषित कर दिया गया है.

वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने लिया एक्शन

बच्ची का वीडियो वायरल होने के बाद मामले में पुलिस ने हस्तक्षेप किया. इसके बाद अखाड़े में कोहराम मच गया. आमसभा के बाद ये फैसला लिया गया कि अब जबतक लड़की बाइस साल की नहीं हो जाती, तब तक उसे दीक्षा नहीं दी जाएगी. जब कोई लड़की दीक्षा लेती है तो पहले छह महीने उसे कच्चे दस्तवेज के आधार पर रखा जाता है. इस दौरान ये पता चलता है कि कहीं सामने वाले ने आवेश में दीक्षा तो नहीं ली. एक बार छह महीने का समय बीत जाता है, तब उसे पक्का दस्तावेज दिया जाता है.

संन्यास दिलाने पर महंत कौशल गिरि ने क्या कहा

गुरु महंत कौशल गिरि ने बताया था- संन्यास परंपरा में दीक्षा लेने की कोई उम्र नहीं होती। संन्यासी जीवन धर्म ध्वजा और अग्नि के सामने  बीतता है। गौरी गिरि महारानी को 12 साल तक कठोर तप करना होगा। वह अखाड़े में रहकर गुरुकुल परंपरा के अनुसार शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करेगी। जहां उसे वेद, उपनिषद एवं धर्म ग्रन्थ में पारंगत किया जाएगा। इसके बाद संन्यासी बनकर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करेगी।

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