हरियाणा के भिवानी में भारतीय सेना के जवान बलराम के घर 18 दिन पहले घर में बेटी का जन्म हुआ। परिजनों ने बड़े चाव से बेटी का नाम भाग्यशाली रखा मगर उसकी किस्मत ऐसी थी कि डेढ़ दिन बाद ही उसके दिमाग की नश फट गए और हालत गंभीर हो गई। परिजन उसको हिसार के आठ निजी और सरकारी अस्पतालों में भी लेकर गए मगर कोई चिकित्सक उसकी हालत में सुधार न कर सका। इसके बाद परिजन उसे नागरिक अस्पताल लेकर पहुंचे। सिविल सर्जन डॉ. रघुबीर शांडिल्य के अटल विश्वास और चिकित्सकों की मेहनत ने उसका भाग्य फिर से जाग दिया और वह भाग्यशाली हो गई।
राष्ट्रपति पुरस्कार अवॉर्डी अशोक भारद्वाज ने बताया कि उसका भाई मुकेश दिव्यांग है। जिसका बेटा बलराम भारतीय सेना में सेवारत है। बलराम की पत्नी मोनिका ने 12 जनवरी को महेंद्रगढ़ के निजी अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। डेढ़ दिन बाद अचानक ही भाग्यशाली की तबीयत खराब हो गई। परिजनों ने उसके भिवानी और हिसार के आठ अस्पतालों में जांच करवाई मगर उसका उपचार नहीं कर सका।
हिसार के एक निजी अस्पताल से जब परिजन उसे लेकर घर जा रहे थे तो अचानक ही भाग्यशाली का दिल धड़कना शुरू हो गया। इसके बाद अशोक भारद्वाज ने सिविल सर्जन डॉ. रघुबीर शांडिल्य और उप सिविल सर्जन डॉ. कृष्ण कुमार ने फोन पर संपर्क किया, जिन्होंने उसे बच्चे के उपचार का उचित आश्वासन दिया। परिजनों ने 14 जनवरी को उपचार के लिए बच्ची को नागरिक अस्पताल के नीकू आईसीयू में दाखिल किया। जहां बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रिटा सिसोसिया ने टीम सहित बच्ची का उपचार किया और उसे नया जीवन दान दिया।
परिजनों की आंखों में आए खुशी के आंसू
दिन-प्रतिदिन बच्ची के स्वास्थ्य में सुधार हुआ और वह धीरे-धीरे मुस्कुराने लगी। बच्ची की मुस्कान देख परिजनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। पिछले दो-तीन दिन से बच्ची ने दूध पीना शुरू कर दिया, जिसके बाद शनिवार को परिजन उसे अस्पताल से छुट्टी दिलाकर घर ले गए। हर कोई सिविल सर्जन और बाल रोग विशेषज्ञ का शुक्रिया अदा कर रहा था कि उनके अथक प्रयास से एक मां को फिर से उसकी बेटी मिली है।
मरीज का उपचार करना प्रत्येक चिकित्सक का फर्ज होता है। चिकित्सक अपने मरीज के उपचार के लिए अर्थक प्रयास करता है और हर संभव प्रयास करता है कि उसका मरीज स्वस्थ हो जाए। मरीज और उसके परिजनों के चेहरे की मुस्कान ही एक चिकित्सक के लिए सबसे ज्यादा अहम है। बच्ची भाग्यशाली के उपचार के लिए हमारे अस्पताल के चिकित्सकों में बहुत मेहनत की, जिसके लिए वे बधाई के पात्र है। – डॉ. रघुबीर शांडिल्य, सिविल सर्जन।