केंद्रीय बजट से लघु-मझौले और खुदरा व्यापारियों को निराशा हाथ लगी है। यह बजट चुनिंदा उद्योगपतियों के लिए राहत देने वाला और बाकी वर्गों के लिए खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसा है। राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित गुप्ता व कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री की ओर से पेश बजट पर यह प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने कहा कि जीएसटी संग्रह में वृद्धि के बावजूद देश का राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है। यह इस बात का सुबूत है कि सरकार व्यापारियों, लघु उद्योगों व आम आदमी को सिर्फ कमाई का साधन समझने लगी है। केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि देश का पैसा कहां जा रहा है। आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत 16 लाख नौकरियां और मेक इन इंडिया के तहत 60 लाख नौकरियां आने की बात बजट में कही गई है। इस घोषणा ने प्रत्येक वर्ष 2 करोड़ नौकरियों की पीएम नरेंद्र मोदी की घोषणा का मजाक बना दिया है।
उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया योजना सात साल पहले शुरू की गई थी। वित्त मंत्री को बताना चाहिए था कि इसमें अब तक कितने रोजगार सृजित हुए। देश का खुदरा व्यापार और लघु-मझौला उद्योग दम तोड़ चुका है। इन दोनों क्षेत्रों के उद्धार के बिना केंद्र सरकार निर्दिष्ट करे कि किस तारीख तक, किस क्षेत्र में ये नौकरियां दी जाएंगी।
भारत के 10 प्रतिशत अमीरों के पास देश की कुल 75 प्रतिशत संपत्ति है और 60 प्रतिशत आम लोगों के पास महज 5 प्रतिशत। कोविड महामारी के बीच जब देश में भुखमरी, बेरोजगारी और गरीबी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है तो उन 10 प्रतिशत लोगों को टैक्स में राहत देकर आम जनता को सरकार क्यों निचौड़ रही है।
गरीब, नौकरीपेशा, मध्यम वर्ग, किसान, युवाओं और छोटे उद्योगों के लिए बजट में कुछ नहीं है। खुदरा व्यापारियों को उम्मीद थी कि ऑनलाइन व्यापार पर टैक्स बढ़ाकर उन्हें राहत दी जाएगी, लेकिन उन्हें निराशा के सिवाय कुछ नहीं मिला। लघु उद्यमी केंद्र सरकार से उम्मीदें लगाए बैठे थे कि एमएसएमई में सुधार कर उनके उत्थान के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए जाएंगे, मगर उनकी सारी उम्मीदों को धराशायी कर दिया गया।