शौर्य चक्र विजेता लक्ष्मण सिंह की याद में उनके पैतृक गांव बब्याल में बनाए गेट का शुक्रवार को उनकी पुण्यतिथि के मौके पर लोकार्पण कर दिया गया। 18 फरवरी 2005 में लेह-लद्दाख के खरदूंगला दर्रे में हिमस्खलन के दौरान लापता हुए लक्ष्मण सिंह का पार्थिव शरीर 4 जुलाई 2005 को सेना को बर्फ में दबा मिला था। 31 जनवरी 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने शहीद के मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया। यह सम्मान उनकी पत्नी मीना कुमारी को सौंपा गया था। शुक्रवार को जब गृहमंत्री अनिल विज ने इस यादगारी गेट का रिबन काटा तब मीना कुमारी की आंखों में आंसू आ गए।
2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने शहीद के परिवार को 7 लाख देने की घोषणा की। हालांकि यह रकम नहीं मिली। लक्ष्मण सिंह का बेटा रजत राणा एक साइंस इंडस्ट्री में काम करता था। रजत ने 2014 में अपने बॉस डॉ. अनिल जैन के सामने बात रखी थी। डॉ. जैन ने पीएम नरेंद्र मोदी के पत्र लिखे। असर यह हुआ कि प्रदेश की मनोहर सरकार ने परिवार को आर्थिक मदद व पेंशन दी। पिछले साल 18 फरवरी को पुण्य तिथि पर ही स्मृति द्वार का शिलान्यास किया था।
4.31 लाख से बब्याल सरकारी स्कूल के ठीक सामने ये गेट बना। जिसका ठीक एक साल बाद लोकार्पण हुआ। विज ने कहा कि सदर नगर परिषद के माध्यम से बने स्मृति द्वार से अब क्षेत्र वासी लक्ष्मण सिंह के बारे में जान सकेंगे। पूरी जानकारी स्मृति द्वार पर दर्ज है। मौके पर शहीद के बेटे अजीत राणा, रजत राणा, भाजपा ग्रामीण मंडल अध्यक्ष किरणपाल चौहान, मदनलाल शर्मा, नरेंद्र राणा, अनिल मेहता, संजीव सिसोदिया, भारत कोछड़, विकास जैन, परमिंद्र शर्मा मौजूद रहे।
रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स में थे लक्ष्मण सिंह : लक्ष्मण सिंह रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन का हिस्सा जनरल रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स में बतौर ओईएम तैनात थे। खरदूंगला दर्रे पर बर्फ के तूफान व हिमस्खलन में रास्ता साफ करते वक्त 18 फरवरी 2005 को लापता हो गए थे। 4 जुलाई को उनका शव मिला था।