दूर दराज के आते है श्रद्धालु , होती है मनोकामनाएं पूरी, महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक ने सिसला गांव में दिया था अपने शीश का दान
(कैथल) जहां श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक की परीक्षा ली थी वर्तमान में हिसार के समीप बीड़ बबरान के नाम से प्रसिद्ध है वह पेड़ जिसके पत्ते वीर बर्बरीक ने बांधे थे आज भी बंधे हुए होते हैं । वह स्थान जहां बर्बरीक ने श्री कृष्ण को शीश का दान दिया तथा जहां आशीष को स्तंभ पर स्थापित किया गया ताकि वीर बर्बरीक महाभारत का युद्ध देख सके वर्तमान में गांव सेरधा में है वह स्थान कुरुक्षेत्र के 48 कोस की धरती के मध्य का स्थान है जहां से चारों पक्षों की दूरी 24- 24 कोस है यहां से वीर बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखा बर्बरीक का शीश जिस पक्ष की ओर देखता था उसी पक्ष की जीत शुरू हो जाती थी युद्ध का फैसला ना होते देखकर श्री कृष्ण ने दंडक ऋषि को आदेश दिया कि वह बर्बरीक के शीश को लेकर कुछ समय के लिए समाधि ले ले ताकि महाभारत के युद्ध का अंत हो सके।
श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र चलाकर शीश को दंडक ऋषि की गोद में पहुंचा दिया जिसे लेकर दंडक ऋषि गांव सिसला की धरती में समा गए। महाभारत के युद्ध का अंत हुआ तो दंडक ऋषि शीश को लेकर प्रकट हुए वर्तमान में यह स्थान कैथल के गांव सिसला सीसमोर में है तथा वीर बर्बरीक की पूजा सिसला गांव में श्याम बाबा के नाम से होती है यह विजय स्तंभ जहां पांडवों द्वारा वीर बर्बरीक के शीश की स्थापना की गई थी वर्तमान में द्रोपदी कूप कुरुक्षेत्र पर स्थित है। आज युग के वीर बर्बरीक आज कलयुग के श्याम है इसके बारे में प्रसिद्ध है कि आज भी वह माता को दिए वचनों के अनुसार इस संसार में हारने वाले इंसान का साथ देते हैं। आपको बता दे सिसला गांव का यह मंदिर करीब 5600 साल पूराना है। और आज यह मंदिर सिसला धाम के नाम से दूर दराज तक प्रसिद्ध है।
कौन हैं बाबा खाटू श्याम
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। यह पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे। ऐसी कथा है कि खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने इन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया।
खाटूश्याम जी के चमत्कार
भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।