( गगन थिंद ) नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर किसी मुस्लिम महिला को धारा 125 CRPC के तहत आवेदन के दौरान तलाक दे दिया जाता है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत गुहार लगा सकती है, जो अतिरिक्त उपाय प्रदान करता है. बार एंड बेंच ने जस्टिस नागरत्ना के हवाले से कहा, ‘हम इस आपराधिक अपील को इस अहम निष्कर्ष के साथ खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 CRPC सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर.’ उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर मुस्लिम महिला तलाकशुदा है और उसने धारा 125 CRPC के तहत आवेदन किया है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 2019 का सहारा ले सकती हैं, जो अतिरिक्त राहत प्रदान करता है.
शीर्ष अदालत ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के बावजूद तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 125 की प्रयोज्यता की फिर से पुष्टि की है. यह अधिनियम ऐतिहासिक शाह बानो केस का नतीजा है, जहां अदालत ने धारा 125 CRPC को एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान के रूप में मान्यता दी थी जो मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है.