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कुलदीप बिश्नोई की राज्यसभा सीट के लिए लॉबिंग:दिल्ली दौरे बढ़ाए, मोदी से पुराने रिश्ते याद किए; पंवार के जीतने से खाली हुई सीट

( गगन  थिंद ) हरियाणा भाजपा के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई एक बार फिर दिल्ली में सक्रिय हो गए हैं। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद वह हरियाणा में खाली हुई राज्यसभा सीट के लिए लॉबिंग करने में जुट गए हैं। ये सीट कृष्ण लाल पंवार के इसराना से विधायक बनने पर खाली हुई है। बिश्नोई परिवार अपनी राजनीतिक जमीन फिर से बनाने में जुटा है। कुलदीप बिश्नोई ने 11 अक्टूबर को दिल्ली में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से मुलाकात की। कुलदीप बिश्नोई के साथ उनका पूरा परिवार भी मौजूद रहा। इस दौरा हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर और आगामी राजनीति को लेकर चर्चा हुई। इसका बाद उन्होंने सोशल मीडिया (X) पर पहले पिता चौधरी भजनलाल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुरानी तस्वीर सांझा की। इसके बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से मुलाकात की फोटो जारी की।

आदमपुर में 57 साल बाद मिली हार

हरियाणा विधानसभा चुनाव में आदमपुर सीट पर भजनलाल परिवार का 57 साल पुराना गढ़ टूट गया है। इस चुनाव में भव्य बिश्नोई 1268 वोटों से हार गए। इस हार के बाद कुलदीप बिश्नोई काफी दुखी हैं। वह आदमपुर में लोगों के बीच भावुक हो गए थे।

किरण चौधरी हाल ही में चुनी गई हैं राज्यसभा सांसद

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कुलदीप बिश्नोई राज्यसभा की खाली हुई सीट पर चुनाव लड़कर राज्यसभा जाना चाहते हैं। राज्यसभा सीट के लिए भाजपा के पास पूर्ण बहुमत भी है। इससे पहले दीपेंद्र हुड्‌डा के लोकसभा सांसद बनने पर खाली हुई राज्यसभा सीट पर किरण चौधरी ने चुनाव लड़ा और वह राज्यसभा सांसद चुनी गईं। किरण चौधरी के सामने विपक्ष चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। भूपेंद्र हुड्‌डा अकसर यह कहते नजर आए कि हमारे पास बहुमत नहीं है।

बिश्नोई परिवार को राजनीतिक ऑक्सीजन की जरूरत

हरियाणा विधानसभा चुनाव में बिश्नोई परिवार के हिस्से 3 सीटें आईं। 3 में से 2 सीटों पर नजदीकी हार हुई और 1 सीट नलवा पर कुलदीप के दोस्त रणधीर पनिहार जीत गए। बेटे की हार से उन्हें झटका लगा। उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा आदमपुर से चुनाव जीतकर सरकार में मंत्री बने। मगर ऐसा नहीं हो पाया। इसलिए वह अब राज्यसभा के लिए लॉबिंग कर रहे हैं।

गैर जाट चेहरे के रूप में पेश कर रहे दावेदारी

कुलदीप बिश्नोई भाजपा में गैर जाट चेहरे के रूप में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। उनके पिता भजनलाल की प्रदेश में गैर जाट सीएम के रूप में पहचान थी। गैर जाट वोटर ही भाजपा की प्रदेश में ताकत माने जाते हैं। ऐसे में कुलदीप इस वोट बैंक को जोड़े रखने में सहायक बनना चाहते हैं और अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। हरियाणा के 3 बार मुख्यमंत्री रहे भजनलाल के समय प्रदेश का संपूर्ण नॉन जाट वोट बैंक उनके साथ था, जो बाद में कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हजकां के साथ लामबंद रहा। 2011 से 2014 तक हजकां और भाजपा के गठबंधन के बाद यह वोट बैंक 2014 विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गया।

एक प्रतिशत बिश्नोई वोटर वाले नेता रहे 3 बार सीएम

भजनलाल हरियाणा में मात्र 1 प्रतिशत बिश्नोई होते हुए भी 3 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। हरियाणा के सभी 79 प्रतिशत नॉन जाट जातियों को साथ लेकर साथ चले। बिश्नोई परिवार का दावा है कि उनका हरियाणा के हर गांव में कार्यकर्ता है और सभी गैर जाट जातियों पर उनकी मजबूत पकड़ है। हरियाणा में 2 बार लोकसभा सांसद और 4 बार विधायक रह चुके कुलदीप बिश्नोई आज तक किसी बड़े संवैधानिक पद पर नहीं रहे हैं।

सरकार में 16 साल से पद से दूर बिश्नोई परिवार

विधानसभा चुनाव में आदमपुर में मिली हार से बिश्नोई परिवार एक बार फिर सत्ता सुख से दूर हो गया है। अगर भव्य और दुड़ाराम चुनाव जीतते तो भव्य को मंत्री पद मिल सकता था। मगर आदमपुर से हार ने मंत्री पद से दूर कर दिया। हरियाणा में बिश्नोई परिवार 16 साल से सरकार में पद से बाहर है। 2005 से 2008 तक भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई हरियाणा के डिप्टी सीएम पद पर रहे। इसके बाद निजी कारणों से उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद से आज तक बिश्नोई परिवार को सरकार में कोई पद नहीं मिला है।

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