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रेवाड़ी की तीनों सीटें BJP ने जीती, ओवर कॉन्फिडेंस-भीतरघात कांग्रेस को ले डूबा, हार के बावजूद बढ़ा मत प्रतिशत

(गौरव धीमान),हरियाणा में अहीरवाल बेल्ट की राजधानी कहे जाने वाले रेवाड़ी जिले में भारतीय जनता पार्टी ने तीनों सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि कांग्रेस तीनों ही सीटों पर बुरी तरह हार गई। भाजपा की जीत का अहम कारण संगठन के अलावा RSS का ग्राउंड पर वर्क रहा। जबकि कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण ओवर कॉन्फिडेंस और भीतरघात रहा। भीतरघात करने की कोशिशें तो भाजपा के भी कुछ नेताओं ने की लेकिन रिजल्ट देखकर साफ है कि उनकी तमाम कोशिशें नाकाम ही रही।

कांग्रेस ने रेवाड़ी जैसी सीट को गवां दिया। इस सीट पर शुरू से ही जीत को लेकर पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव और उनके बेटे चिरंजीव राव आश्वास्त नजर आ रहे थे। पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस का तीनों ही सीटों पर मत प्रतिशत जरूर बढ़ा लेकिन ये जीत में तब्दील नहीं हो पाया।

दरअसल, कांग्रेस ने रेवाड़ी सीट से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के दामाद चिरंजीव राव को उतारा। उनके सामने बीजेपी ने अपने पुराने संगठन के नेता और कोसली से विधायक रहे लक्ष्मण यादव को टिकट दिया। इसी तरह बावल में कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारी लाल की टिकट काटकर बीजेपी ने हेल्थ डिपार्टमेंट में डायरेक्टर पद से नौकरी छोड़ राजनीति में उतरे डॉ. कृष्ण लाल को कांग्रेस के पूर्व मंत्री डॉ. एमएल रंगा के सामने उतारा। वहीं कोसली विधानसभा सीट पर कांग्रेस के हेवीवेट प्रत्याशी पूर्व मंत्री जगदीश यादव के सामने बीजेपी ने एक सामान्य कार्यकर्ता अनिल डहीना को टिकट दिया। चुनाव से पहले तीनों की सीटों पर एंटी इनकंबेंसी दिख रही थी। लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने टिकट काटी उससे माहौल पूरी तरह बदल गया। हालांकि ये इलाका पिछले 2 चुनाव में भी बीजेपी के पक्ष में ही रहा है। लेकिन इस बार जमीनी हालात को भांपते हुए भाजपा ने चुनाव के वक्त बूथ लेवल पर साइलेंट तरीके से काम करते हुए तीनों ही सीटें जीत ली।

सीधे मुकाबले में कांग्रेस पर बीजेपी भारी

2019 के चुनाव की बात करें तो रेवाड़ी सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना। यहां बीजेपी से बागी होकर रणधीर कापड़ीवास ने चुनाव लड़ते हुए 35 हजार से ज्यादा वोट लिए। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और चिरंजीव राव जीत गए। जबकि बावल और कोसली में सीधा मुकाबला होने के कारण भाजपा को जीत मिली थी। इस बार रेवाड़ी और कोसली सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद की जा रही थी। रेवाड़ी में सतीश यादव आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। पहले दो चुनाव लड़ चुके सतीश दोनों बार 35 हजार से ज्यादा वोट ले चुके थे। लेकिन इस बार 20 हजार वोट भी उन्हें नहीं मिले। चुनाव के अंतिम वक्त में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच हो गया। आमने-सामने की टक्कर में बीजेपी कांग्रेस पर भारी पड़ी। यही हाल कोसली विधानसभा सीट पर हुआ। यहां निर्दलीय प्रत्याशी मनोज कोसलिया के चुनाव में आने से त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे थे। लेकिन रिजल्ट पर नजर डाले तो फाइट कांग्रेस के जगदीश यादव और बीजेपी के अनिल डहीना के बीच हुई, जिसका फायदा बीजेपी को मिला और अनिल डहीना जीत गए।

चिरंजीव एक बार आगे निकले, रंगा 4 और जगदीश ने 3 बार

मंगलवार को हुई मतणना के शुरूआती दौर में ही भाजपा के तीनों प्रत्याशियों ने कांग्रेस पर बढ़त बनानी शुरू कर दी थी। पोस्टल बेलेट खुलने के बाद रूझान में आगे दिखने वाले कांग्रेस प्रत्याशी ईवीएम खुलने के बाद लगातार पिछड़ते चले गए। रेवाड़ी सीट पर 19 राउंड की काउंटिंग में चिरंजीव राव ने पांचवें राउंड में एक बार बीजेपी प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह यादव से ज्यादा वोट लिए। जबकि बावल सीट पर डा. एमएल रंगा ने 14, 17, 18 और 19 राउंड में डॉ. कृष्ण कुमार से ज्यादा वोट लिए। वहीं 20 राउंड की काउंटिंग में कोसली विधानसभा सीट पर जगदीश यादव ने 3, 13 और 16 राउंड में बीजेपी के अनिल डहीना से ज्यादा वोट लिए। हालांकि इन सभी राउंड में बीजेपी के तीनों प्रत्याशी पहले ही बढ़त बना चुके थे। ऐसे में उनके ज्यादा वोट लेने के बाद भी उन्हें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।

सीट वाइज मत प्रतिशत बढ़ा पर जीत नहीं मिली

रेवाड़ी सीट: रेवाड़ी विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर 2019 में चिरंजीव राव ने जीत दर्ज की थी। चिरंजीव को 43 हजार 870 वोट मिले। यह कुल वोटों का 27.82% था। भाजपा प्रत्याशी सुनील मुसेपुर ने 42 हजार 553 यानी 26.99% वोट लिए। जिसकी वजह से 1317 वोट से हार गए। इस बार भाजपा के लक्ष्मण सिंह यादव ने 83 हजार 747 यानी 49.95% वोट लिए। जबकि कांग्रेस के चिरंजीव राव को 54 हजार 978 यानी 32.79% मत मिले और वह 28769 वोटों से हार गए। चिरंजीव की हार का सबसे बड़ा कारण ओवर कॉन्फिडेंस रहा। इसके अलावा ग्रामीण इलाके ही नहीं, बल्कि शहर में भी उनके खिलाफ साइलेंट तरीके से विरोध बना रहा, लेकिन वह इसे भांप नहीं पाए। जिसकी वजह से उन्हें किसी भी इलाके में बढ़ नहीं मिल पाई।

कोसली विधानसभा सीट: कोसली विधानसभा सीट पर 2019 के चुनाव में कांग्रेस को यादवेंद्र सिंह 40 हजार 189 यानी 26.73% वोट मिले। जबकि लक्ष्मण सिंह यादव 78 हजार 813 यानी 52% वोट मिले थे। लक्ष्मण सिंह यादव ने उस समय 38 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। इस बार कांग्रेस के जगदीश यादव ने 74 हजार 976 यानी 42.1% वोट लिए। जबकि भाजपा के अनिल डहीना ने 92 हजार 185 यानी 51.76% वोट लिए। इस तरह अनिल डहीना 17209 वोटों से जीत गए। अनिल की जीत का सबसे बड़ा कारण कोसली सीट रामपुरा हाउस की पैतृक सीट होना रहा। अनिल को टिकट भी केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की सिफारिश पर ही मिली थी। इसलिए इस सीट पर राव इंद्रजीत सिंह ने खूब प्रचार किया। साथ ही लक्ष्मण सिंह यादव के रेवाड़ी शिफ्ट होने से एंटी इनकंबेंसी का खतरा भी कम हो गया। ये दोनों ही फैक्टर बीजेपी के काम आए। वहीं कांग्रेस के जगदीश यादव की हार के पीछे भीतरघात और ओवर कॉन्फिडेंस रहा। यहां टिकट कटने से नाराज यादवेंद्र सिंह पहले ही बगावत के संदेश दे चुके थे।

बावल सीट: बावल विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने डॉ. एमएल रंगा को लगातार दूसरे चुनाव में टिकट दी। रंगा इस सीट पर वर्ष 2000 में विधायक रह चुके हैं। 2019 के चुनाव में डॉ. एमएल रंगा को 36 हजार 804 यानी 25.58% वोट मिले। भाजपा के डॉ. बनवारी लाल ने 69 हजार 49 वोट यानी 47.99% मत हासिल करते हुए रंगा को 32 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। इस बार भाजपा प्रत्याशी डॉ. कृष्ण कुमार को 86 हजार 858 यानी 55.28% वोट मिले। जबकि कांग्रेस के डॉ. एमएल रंगा को 66 हजार 228 यानी 42.54% वोट मिले और उन्हें डॉ. कृष्ण कुमार ने 20011 वोट से हरा दिया। इस सीट पर कांग्रेस की हार के पीछे का कारण यहां से एक-दो नहीं, बल्कि 50 से ज्यादा दावेदार होना रहा। कुछ चेहरे टिकट कटने के बाद डॉ. रंगा के साथ चुनाव प्रचार में जरूर दिखाई दिए लेकिन जमीनी स्तर पर वर्क की बजाए कार्यक्रम की स्टेज तक सीमित रहे। यहां भी कांग्रेसियों में जीत का ओवर कॉन्फिडेंस बना हुआ था और अंतिम समय में उन्हें ले डूबा। जबकि भाजपा की जीत का सबसे अहम कारण यहां से डॉ. बनवारी लाल की टिकट काट एंटी इनकंबेंसी को खत्म किया गया। इतना ही नहीं डॉ. कृष्ण कुमार अधिकारी के रूप में जिले में काफी लंबे समय तक काम कर चुके थे। ऐसे में उनकी साफ छवि ने भी इलाके में उनकी पकड़ बनाई। जीत का तीसरा अहम कारण केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह द्वारा लगातार प्रचार करना भी रहा। क्योंकि बावल सीट पर भी रामपुरा हाउस का दबदबा हमेशा रहा है।

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