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संविधान की सभी देते हैं दुहाई: विपक्षी दलों का अलग अंदाज, विपक्ष किस ओर ले जाना चाहता है देश को

Everyone appeals to the Constitution: Opposition parties have a different style, where does the opposition want to take the country?

संविधान की दुहाई देने वाला विपक्ष भारत की संघीय व्यवस्था को ही तार-तार कर रहा है. संघीय जांच एजेंसियों पर सवाल उठाए जा रहे हैं. जांच एजेंसियों की टीम पर हमले रहे हैं. राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच टकराव तो पहले भी होते रहे हं, लेकिन अब तो मुकदमे भी होने लगे हैं. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में तिहाड़ की हवा खा रहे हैं. मार्च में दिल्ली शराब घोटाले में उनकी गिरफ्तारी हुई थी. यानी चार महीने से जेल से ही वे सरकार चला रहे हैं. झारखंड के सीएम जमानत पर पांच महीने जेल में बिता कर बाहर आए हैं. झारखंड सरकार के एक मंत्री आलमगीर आलम ने तो टेंडर कमीशन घपले में जेल जाने के करीब महीने भर बाद इस्तीफा दिया. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी अलग बवाल काट रही हैं. उन्हें अपनी पुलिस पर भरोसा है, पर आम आदमी जिस सीबीआई पर सर्वाधिक भरोसा करता है, उसी की जांच पर ममता को आपत्ति है. संदेशखाली मामले के आरोपी को बेगुनाह साबित करने की कोशिश में बंगाल सरकार सीबीआई जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. ममता के बंगाल में शिक्षकों की नौकरी बेचने के आरोप में मंत्री-विधायक जेल जा चुके हैं. बिहार का सीएम रहे लालू प्रसाद यादव और झारखंड के मधु कोड़ा भी गिरफ्तार हुए थे. झारखंड में हाल ही एक मंत्री ने पद और गोपनीयता की शपथ लेने से पहले परंपरा की परवाह किए बगैर बाजाप्ता कुरान की आयत पढ़ी. गैर एनडीए शासित राज्यों में तो सीएम-राज्यपाल ऐसे टकराते हैं, जैसे दोनों में पैतृक संपत्ति का पुराना विवाद हो. यह सब अपने ही देश में संभव है !

संविधान की सभी देते हैं दुहाई
आश्चर्य होता है कि एनडीए विरोधी पार्टियों के सभी नेता सबसे अधिक चिंतित संविधान को लेकर दिखते हैं. संविधान का नाम तो इस तरह जपते हैं, जैसे कोई साधक मंत्र का जाप करता है. अब तो विपक्ष के कई नेता संविधान की प्रति ठीक उसी तरह साथ लिए चलते हैं, जैसे कभी बोफोर्स घोटाले में कमीशन खाने वालों के नामों की अदृश्य सूची लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह तत्कालीन पीएम राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव प्रचार में घूमते थे. वे अक्सर अपनी सभाओं में यह वाक्य बोलते कि बोफोर्स कांड में शामिल तमाम लोगों के नाम उनके पास हैं. ऐसा कहते वे अपना एक हाथ कुर्ते की जेब तक भी ले जाते. हालांकि उन्होंने वह सूची कभी नहीं दिखाई.

विपक्षी दलों का अलग अंदाज
विश्वनाथ प्रताप सिंह से थोड़ा अलग अंदाज में अब विपक्षी दलों के नेता संविधान की कापी अपनी सभाओं में दिखाते हैं. इतने भर से मन नहीं भरता तो संविधान थाम कर विधायी सदन की सदस्यता की शपथ लेते हैं. संविधान निर्माताओं ने सपने में भी यहां तक की स्थिति का अनुमान नहीं लगाया होगा, वर्ना इसके भी प्रावधान जरूर किए होते कि संवैधानिक व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने वाले से कैसे निपटना है. सबसे चौंकाने वाली बात यह कि संविधान की सुरक्षा की चिंता उन दलों के नेता अधिक करते हैं, जिनके नेताओं ने कांग्रेस के साथ रह कर 1975 में सबसे अधिक और घातक छेड़छाड़ की थी. यह भी अचरज की ही बात होगी कि उस छेड़छाड़ से पीड़ित-प्रभावित नेता भी संविधान पर खतरे की मुनादी कर जनता को आगाह करने का झंडा उठाए नेताओं के सहबाला बने हुए हैं.

बंगाल बना घुसपैठियों का सेंटर
ममता पहले क्या कहती थीं और अब उनका स्टैंड क्या है ! ममता बनर्जी का लोकसभा में 2005 का वह कारनामा शायद सबको याद होगा. पश्चिम बंगाल में तब लेफ्ट फ्रंट की सरकार थी. लोकसभा में ममता अपने हाथ में कागज का पुलिंदा लेकर गरज रही थीं. वे बता रही थीं कि बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों को खुली छूट लेफ्ट फ्रंट सरकार ने दे रखी है. उन्हें राज्य सरकार बंगाल का वासी बताने के लिए राशन कार्ड और ऐसे तमाम दस्तावेज मुहैया कराती है. उन्होंने तो कुछ ऐसे नामों की सूची भी दिखाई थी, जो बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में वोटर के रूप में एक साथ दर्ज थे. उन्होंने लोकसभा में इसके लिए हंगामा मचा दिया था. स्पीकर के आसन तक वे पहुंच गई थीं. अब ममता को पश्चिम बंगाल में कोई घुसपैठिया नजर नहीं आता. वे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध कर रही हैं. इसे पश्चिम बंगाल में लागू न करने की मुनादी कर रही हैं.

झारखंड में बिगड़ रहा डेमोग्राफी
झारखंड में 2017 में घुसपैठ का मामला तब सामने आया, जब रघुवर दास के नेतृत्व वाली बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी. अब भाजपा के लोगों ने राज्यपाल से मिल कर जो आंकड़े दिए हैं, वास्तव में वे चौंकाने और चिंतित करने वाले हैं. झारखंड हाईकोर्ट में इस बाबत एक पीआईएल भी दाखिल की गई है. हाईकोर्ट ने भी घुसपैठियों की पहचान और उन्हें वापस भेजने की राय के साथ राज्य के सभी उपायुक्तों से हाल ही में हलफनामा मांगा था. हलफनामा जमा भी हुआ, पर उपायुक्तों की जगह निचले स्तर के अधिकारियों ने एफिडेविट दिया कि पहले कभी घुसपैठ हुई होगी, लेकिन हाल के वर्षों में ऐसा कुछ नहीं हुआ है. भाजपा इसे राज्य सरकार के दबाव में अक्षम अधिकारियों द्वारा दायर हलफनामा बता रही है. भाजपा कहती है कि घुसपैठ अब भी जारी है और स्थिति ऐसी ही रही तो 2031 तक संथाल परगना में सर्वाधिक आबादी वाले आदिवासी अल्पसंख्यक हो जाएंगे. भाजपा के प्परदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि 1951 में संथाल परगना में आदिवासियों की संख्या 44.67 प्रतिशत थी. आज यह घट कर 28.11 प्रतिशत रह गई है. यही हाल रहा तो संथाल परगना में आदिवासी अल्पसंख्यक हो जाएंगे.

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