घग्गर नदी का जलस्तर बढ़ने से चीका क्षेत्र के दर्जनों गांवों में बाढ़ आ चुकी है जहां तक नजरें जाती हैं, पानी ही पानी नजर आता है। घग्गर के साथ लगते गांवों में फसलें, हरा चारा पूरी तरह नष्ट हो चुका है। कई गांवों के खेतों में तो 7 से 8 फुट तक पानी जमा है। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि खेतों में बने 10 फुट ऊंचे कोठरे भी पूरी तरह डूबने से दो से तीन फीट तक ही बचे हैं।
बाढ़ का पानी गांवों में घुस चुका है, लोग अपने ही घरों में नजरबंद होकर रह गए हैं, कुछ ग्रामीणों ने रिश्तेदारियों में पलायन कर लिया है। खाने का जैसे-तैसे इंतजाम हो रहा है लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत पीने के पानी की है। जनस्वास्थ्य विभाग के सबमर्सिबल व ग्रामीणों के निजी सबमर्सिबल डूबने की वजह से पीने के पानी की किल्लत बनी हुई है। गांवों की गलियों में पानी भरने से बीमारियां फैलने का डर सता रहा है। प्राकृतिक आपदा में प्रशासन की अनदेखी से लोगों में रोष पनपता जा रहा है।
बाढ़ ग्रसित गांव के लोगों में गुस्सा है कि प्रशासन का कोई अधिकारी उनकी सुध नहीं ले रहा। सब इंतजाम उन्हें अपने ही स्तर पर करने पड़ रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी पटियाला मार्ग पर बने घग्गर नदी के पुल के आसपास फोटो खिंचवाने तक सीमित रह गए हैं। अगर प्रशासन अधिकारियों का इतना ही काम रह गया तो उन्हें ऐसे प्रशासन की कोई जरूरत नहीं है। सिंह प्लॉट के रामकला सिंह, बगीचा सिंह, नरवैल सिंह, बहाल सिंह ने प्रशासन की नजरअंदाजी बयां करते हुए बताया कि बाढ़ ने उनकी फसलें नष्ट कर दी हैं, बच्चे बाढ़ के पानी में न डूब जाएं इसलिए हर समय अपनी नजरों के सामने रखते हैं।
मुसीबत लगातार बढ़ रही है लेकिन कोई अधिकारी उनकी सुध नहीं लेने नहीं पहुंचा। गांव डंडौता के संजू व जसबीर ने बताया कि गलियों में पानी जमा है। गांव की 80 प्रतिशत आबादी सरकारी ट्यूबवैल पर निर्भर थी, लेकिन ट्यूबवैल डूबने से पानी की सप्लाई नहीं मिल रही है। गलियों में जमा पानी की वजह से मच्छर पनपने लगे हैं जिससे बीमारियां फैलने का डर है।
प्रशासन को कोई अधिकारी उनकी सुध नहीं ले रहा है। कई घरों में इतना पानी भर चुका है कि उन्हें घर छोड़कर रिश्तेदारियों में जाना पड़ा। घग्गर के साथ लगते गांव बाऊपुर की गलियों में दो फुट तक पानी जमा है।
घरों में भी पानी घुस चुका है। महिला मामो व बीरमति ने बताया कि वे रात को परिवार व बच्चों के साथ सो रही थी, अचानक कमरों में पानी भर गया। घर में रखा राशन भी खराब हो गया है। खाना बनाने के लिए गांव वालों से ही राशन ले रहे हैं। पूरे गांव में पानी घुसने के बावजूद कोई अधिकारी यह तक पूछने नहीं आया कि हमें खाना मिल रहा है या नहीं? हांसी-बुटाना नहर की पटरी पर ग्रामीणों के साथ पहरा दे रहे बदसुई के पूर्व सरपंच गुरनाम सिंह ने बताया कि नजर की पटरी का कटाव न हो जाए, इसलिए ग्रामीण पूरी रात से ठीकरी पहरे पर बैठे हैं। दो जगह से नहर टूटी लेकिन ग्रामीण उसे खुद ही ठीक करने में लगे रहे। घग्गर नदी की तरफ से हांसी-बुटाना नहर की पटरी टूट गई तो चीका शहर ही डूब जाएगा। उनकी मांग है कि नदी की तरफ पूरी पटरी को पक्का किया जा