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दो सेंटर में परमाणु हमले के पीड़ितों का इलाज;साल भर में बनेंगे-एक सेंटर में होंगे 16 आईसीयू और 20 आइसोलेशन समेत 50 बेड

केंद्र सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटना से सबक लेते हुए लोगों के इलाज की दिशा में कदम बढ़ाया है। देश में पहली बार सरकार केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और परमाणु हमलों या हादसों के शिकार लोगों के इलाज के लिए आधुनिक सेंटर बनाने जा रही है। इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार है।

इसके तहत तमिलनाडु के चेन्नई स्थित स्टैनली मेडिकल कॉलेज और हरियाणा के झज्जर एम्स में एक-एक आधुनिक सीबीआरएन सेंटर बनेगा। दोनों सेंटरों के लिए केंद्र सरकार ने 230 करोड़ रुपए का बजट भी मंजूर कर लिया है।

बोनमैरो ट्रांसप्लांट वाले मरीजों के लिए भी 4 बेड

तमिलनाडु ने सेंटर बनाने के लिए डीपीआर को मंजूरी दे दी है। झज्जर के एम्स में सीबीआरएन सेंटर के लिए समझौते की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। इन्हें बनने में एक साल तक लगेगा। सेंटर 50 बिस्तरों का होगा। इसमें 16 आईसीयू बिस्तर होंगे और 20 आइसोलेशन बेड होंगे। 10 बेड पोस्ट और प्री ऑपरेशन वाले मरीजों के लिए होंगे। इसके अलावा चार बेड ऐसे मरीजों के लिए रखे जाएंगे जिन्हें बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत होगी।

खाली रखे जाएंगे सेंटर के 50 फीसदी बेड

तमिलनाडु के प्रस्तावित सेंटर को लेकर सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि इसके 50% बेड हमेशा खाली रखे जाएंगे। ताकि दिल्ली के मायापुरी में स्क्रैप मार्केट में रेडिएशन या तुगलकाबाद गैस लीक जैसी घटना न हो, तो मरीजों को तुरंत इलाज मिल सके। बता दें कि कानपुर में अमोनिया गैस लीक और विशाखापट्टनम एचपीसीएल रिफाइनरी ब्लास्ट के बाद मरीजों को इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है।

5 राज्यों के सात शहरों में बनेंगे सेकंडरी लेवल सेंटर

गुजरात, राजस्थान, झारखंड समेत 5 राज्यों के 7 शहरों में सेकंडरी लेवल के सीबीआरएन सेंटर बनेंगे। इसके लिए भी केंद्र 140 करोड़ रु. की मंजूरी दी है। गुजरात में अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज, झारखंड में रांची के रिम्स, तमिलनाडु के कन्याकुमारी मेडिकल कॉलेज, चेंगलापट्टू के चेंगलापट्‌टू मेडिकल कॉलेज, तिरुंनलवेली मेडिकल कॉलेज, राजस्थान में कोटा के मेडिकल कॉलेज व यूपी में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सेंटर बनेंगे।

स्वास्थ्य, रक्षा समेत 4 मंत्रालय कर रहे मदद

केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर सेंटर का निर्माण स्वास्थ्य मंत्रालय करा रहा है। इसमें रक्षा मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मदद ली जा रही है। इसमें तय होगा कि सेंटर में इक्यूपमेंट और किस तरह के इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए।

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