रूस पर चौतरफा प्रतिबंधों के बीच यूक्रेन के विद्रोही इलाकों ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से सैन्य मदद मांगी है। रेस्पॉन्स में रूस ने अपने डेढ़ लाख सैनिक हमले के लिए तैयार कर दिए हैं। यूक्रेन ने नेशनल इमरजेंसी घोषित कर दी है और तनाव के बीच अगले 48 घंटे बेहद अहम माने जा रहे हैं। सवाल सबके मन में है कि पुतिन का अगला कदम क्या होगा? रूस-यूक्रेन जंग तय है या फिर कोई ऐसा फैक्टर है, जो इसे टाल सकता है। पढ़िए इन सवालों के जवाब…
व्लादिमीर पुतिन का अगला कदम क्या होगा?
“रहस्य पुतिन का पसंदीदा हथियार है। वे तनाव को बरकार रखेंगे। कभी इसे बढ़ा देंगे और कभी कम कर देंगे।’ बीबीसी से बातचीत में “पुतिन का रूस’ किताब की लेखिका लैला शेवत्सोवा ने सवाल के जवाब में यही कहा। लैला का मानना है कि अगर पुतिन अपने हिसाब से चलते हैं तो वे कभी भी पूरी तरह से यूक्रेन पर हमला नहीं करेंगे। हालांकि, उनके पास इसके कई विकल्प मौजूद हैं। पुतिन साइबर हमला कर सकते हैं। यूक्रेन को आर्थिक नजरिए से समेट सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि रूस की सेना डोनेट्सक और लुहांस्क पर पूरी तरह से कब्जा कर ले। यह वही खेल होगा, जो बिल्ली चूहे के साथ खेलती है।
प्रतिबंधों के बीच पुतिन किस तरह से आगे बढ़ेंगे?
व्लादिमीर पास्तुकोव यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं। पास्तुकोव कहते हैं कि पुतिन मानते हैं कि इतिहास में उनकी जगह खास है। यूक्रेन के मामले में वे चरणबद्ध तरीके से चलेंगे। जैसे- अभी उन्होंने विद्रोही इलाकों को स्वतंत्र घोषित किया है। अब वे सेनाएं भेजेंगे। क्रीमिया के मामले में जो हुआ, उसे देखते हुए कह सकते हैं कि यूक्रेन में अभी आजाद घोषित किए गए इलाके रूसी सरकार के तहत चलें। इसके बाद पुतिन वहां पर लोकल मिलिट्री ऑपरेशन चलाएं और अपनी सीमाओं का दायरा बढ़ाएं।
अब जानिए वो फैक्टर, जो पूरी तस्वीर बदल सकते हैं…
युद्ध की आशंका के बीच मिन्स्क समझौते से उम्मीद है?
UN, EU, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और चीन… सभी यह कह रहे हैं कि रूस व यूक्रेन मिन्स्क समझौते का पालन करें। युद्ध की स्थिति टालने और शांति के लिए यही बेहतर रास्ता पूरी दुनिया सुझा रही है। MINSK में सितंबर 2014 में यूक्रेन और रूस समर्थित विद्रोहियों ने एक समझौता किया था। इसमें 12 पॉइंट की सीजफायर डील हुई थी। इनमें बंदियों का आदान-प्रदान, मदद के साथ-साथ हथियारों और सैनिकों को हटाना भी शामिल था, लेकिन यह दोनों तरफ के सीजफायर वॉयलेशन के चलते जल्द ही टूट गया।
फरवरी 2015 में फ्रांस और जर्मनी की मौजूदगी में रूस और यूक्रेन फिर मिलेे। फिर समझौता हुआ। विवादित इलाकों से सेनाओं की वापसी इसमें शामिल थी। लेकिन, दिक्कत यह थी कि इस पूरे मामले में रूस खुद को पार्टी नहीं मान रहा था और यह भी कि इस स्थिति में वो किसी भी शर्त का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। यूक्रेन कह रहा था कि रूस अपनी सेनाएं हटाए, पर रूस दावा कर रहा था कि विवादित इलाकों में उसकी सेना है ही नहीं। 2015 के समझौते में 13 पॉइंट शामिल थे। अब उम्मीद यही की जा रही है कि यह डील जीवित हो और युद्ध का संकट टल जाए।
नॉरमैंडी ग्रुप की कोशिशें जारी, क्या कामयाबी मिलेगी?
11 फरवरी को रूस, यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के डिप्लोमैट्स ने तनाव को सुलझाने के लिए मीटिंग की। इसमें नॉरमैंडी फॉर्मेट के जरिए हल निकालने पर लंबी बातचीत चली जो बेनतीजा निकली। भारत भी यही चाहता है कि नॉरमैंडी फॉर्मेट के जरिए युद्ध की स्थिति को टाला जा सके। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की। इस मुलाकात में रूस-यूक्रेन संकट, भारत और फ्रांस के बीच डिप्लोमैटिक, आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत पर चर्चा हुई।
नॉरमैंडी फॉर्मेट (ग्रुप) 2015 में बनाया गया था। इसमें जर्मनी, फ्रांस, यूक्रेन और रूस शामिल हैं। इन्होंने पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष-विराम स्थापित करने का लक्ष्य रखा था। नॉरमैंडी फॉर्मेंट पर बेलारुस के मिंस्क शहर में 12 फरवरी 2015 को हस्ताक्षर किए गए थे। इसके मकसद में बॉर्डर को डी-एस्केलेट करने के साथ साथ पूर्वी यूक्रेन के डोनबास शहर का आर्थिक पुनर्निर्माण और राजनीतिक सुधार शामिल था।
नाटो जिसे लेकर शुरू हुआ विवाद, रूस का सारा डर इसी से
नाटो का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) है। यह यूरोपियन और नॉर्थ अमेरिकन देशों के मिलिट्री ग्रुप है। 1949 में इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य सोवियत यूनियन की घेराबंदी और साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव को रोकना था। इसमें फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, पूर्व यूनान, तुर्की, पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल थे। 1954 में साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO) की स्थापना की गई थी। इसमें ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, फिलीपीन्स, थाईलैंड, पाकिस्तान और अमेरिका शामिल थे।
यूक्रेन नाटो से जुड़ना चाहता है, लेकिन पुतिन इसके सख्त खिलाफ हैं। वो किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होने देना चाहता। यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ता है तो नाटो सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी।