( गगन थिंद ) शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी जहांआरा बेगम का जन्म 4 अप्रैल 1614 को हुआ. बादशाह ने अपनी बेटी को शाही तौर-तरीके सिखाने की जिम्मेदारी अपने करीबी दरबारी की पत्नी हरी खानम को सौंपी. जहांआरा जितनी खूबसूरत थीं, उतनी ही विद्वान. उन्होंने फारसी में दो ग्रंथ लिखे. इतिहासकार इरा मुखोटी अपनी किताब में लिखती हैं कि मुगल सल्तनत में बने नए शहर शाहजहानाबाद का नक्शा खुद जहांआरा ने अपनी देखरेख में बनवाया. इसके बाद नए शहर की 19 में से पांच इमारतें भी अपनी निगरानी में बनवाईं, जिसे अब दिल्ली कहा जाता है. पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक को भी जहांआरा बेगम ने ही बनवाया.
कितनी दौलत की मालकिन थीं जहांआरा?
फरवरी 1628 में जब शाहजहां मुगल सल्तनत की गद्दी पर बैठे तो उन्होंने बादशाह की हैसियत से अपनी बेटी जहांआरा को सालाना 6 लाख रुपए वजीफा देने का ऐलान किया. इसके अलावा जहांआरा को एक लाख अशर्फियां, चार लाख रुपए नकद और तमाम जागीरें भी दी गईं, जिनमें सूरत का बंदरगाह भी शामिल था. इससे होने वाली सारी आमदनी पर जहांआरा का हक था. इतिहासकारों के मुताबिक एक वक्त ऐसा आया, जब जहांआरा की सालाना आमदनी बढ़कर 30 लाख रुपए सालाना तक पहुंच गई, जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. वह न सिर्फ मुगल साम्राज्य बल्कि दुनिया की सबसे अमीर शहजादी बन गईं. 17 जून 1631 को जब जहांआरा बेगम की मां मुमताज महल का निधन हुआ तो उनकी संपत्ति का आधा हिस्सा अकेले जहांआरा को मिला. बाकी आधा हिस्सा दूसरे भाई-बहनों में बराबर-बराबर बांट दिया गया. इससे जहांआरा की दौलत में और भी इजाफा हुआ.
भाई की शादी में अकेले आधा खर्च उठाया
अवीक चंदा हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित अपनी किताब ‘दारा शिकोह: द मैन हू वुड बी किंग’ में लिखते हैं कि फरवरी 1630 में जब शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह की शादी हुई, तो इसका जश्न 8 दिनों तक चलता रहा. इतने पटाखे छोड़े गए कि शाहजहानाबाद रात के अंधेरे में भी रोशनी में नहाया नजर आता था. उस वक्त दारा शिकोह की शादी में कुल 32 लाख रुपए खर्च हुए थे, जिसमें से आधी रकम अकेले जहांआरा बेगम ने दी थी. दारा शिकोह के निकाह के दौरान उनकी बेगम नादिरा बानो ने जो लहंगा पहना था उस जमाने में उसकी कीमत 8 लाख रुपये आई थी और इस लहंगे का खर्च भी जहांआरा ने उठाया था. बला की खूबसूरत और अकूत दौलत की मालकिन होने के बावजूद जहांआरा बेगम की शादी नहीं हुई. इतिहासकारों के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह उनके पिता शाहजहां थे. जिनका मानना था कि अगर जहांआरा ने शादी की तो सल्तनत में दामाद को हिस्सा देना पड़ेगा. इससे साम्राज्य पर बुरा असर पड़ेगा और कमजोर हो जाएगा. इतिहासकार निकोलाओ मनूची अपनी किताब में लिखते हैं कि ऐसा नहीं है कि जहांआरा बेगम को कभी प्यार नहीं हुआ. उनके कई प्रेमी थे, जो चुपके-चुपके उनसे मिलने आते थे. हालांकि शादी तक बात नहीं पहुंच पाई.